नई दिल्ली। भारत-चीन सीमा पर तैनात की गई बिहार रेजीमेंट की अपनी अलग ही खासियत है। सर्जिकल स्ट्राइक में हिस्सा लेना हो या कारगिर युद्ध में विजय की कहानी लिखनी हो, बिहार रेजीमेंट की ऐसी सभी लड़ाइयों में खासी भागीदारी रही है।
ऐसा नहीं है कि बिहार नाम होने से इसमें सिर्फ बिहार के लोग ही चुने जाते हैं, इस रेजीमेंट का सिर्फ नाम ही बिहार रेजीमेंट हैं। इस रेजीमेंट ने इतिहास में दर्ज किए जाने वाले काम किए हैं, इसी वजह से बिहार रेजीमेंट को भारतीय सेना का एक मजबूत अंग माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि बिहार रेजीमेंट के जवान बहादुर होते हैं और वो किसी भी स्थिति में रह पाने के लायक होते हैं इस वजह से दुर्गम और जटिल परिस्थितियों में इनको तैनात किया जाता है। गलवन और इस तरह की कुछ अन्य दुर्गम घाटी वाले इलाके में इस रेजीमेंट के जवान तैनात हैं!
प्राप्त करने का गौरव हासिल है। यदि हाल के दिनों की बात करें तो इस रेजीमेंट ने सन् 1999 के कारगिल युद्ध तथा 2016 में पाकिस्तानी आतंकियों से जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में आतंकियों के खिलाफ मोर्चा लिया था।
प्राणों की आहूति देकर करते हैं मातृभूमि की रक्षा
'जय बजरंगबली' और 'बिरसा मुंडा की जय' की हुंकार इस रेजीमेंट का वाक्य है। इस वाक्य को कहते हुए इस रेजीमेंट के जवान अपने में जोश भरते हैं और दुश्मन के दांत खट्टे कर देते हैं। अपने प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि की रक्षा करने का बिहार रेजीमेंट सेंटर का इतिहास रहा है। इस रेजीमेंट ने दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था।
देश का दूसरा सबसे बड़ा कैंटोनमेंट
सन् 1941 में अपने गठन के बाद से देश को जब-जब जरूरत पड़ी, बिहार रेजीमेंट के जांबाज जवान वहां खड़े दिखे। रेजीमेंट का मुख्यालय बिहार की राजधानी पटना के पास दानापुर (दानापुर आर्मी कैंटोनमेंट) में है। यह देश का दूसरा सबसे बड़ा कैंटोनमेंट है।
इतिहास में दर्ज बहादुरी की मिसालें
'कर्म ही धर्म है' के स्लोगन के साथ सीमा की पहरेदारी करने वाले बिहार रेजीमेंट के गठन का श्रेय भले ही अंग्रेजी हुकूमत को जाता है, लेकिन इसने अपने स्थापना काल से बहादुरी और देशभक्ति के जो उदाहरण पेश किए हैं, वे इतिहास में दर्ज हैं।
बिहार रेजीमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी पैदल सेना रेजीमेंट में से एक है। बिहार रेजीमेंट का गठन 1941 में 11 वीं (टेरिटोरियल) बटालियन, 19 वीं हैदराबाद रेजिमेंट को नियमित करके और नई बटालियनों का गठन करके किया गया था।
उरी में रेजीमेंट के 15 जांबाजों ने दी शहादत
बीते 18 सितंबर 2016 को जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तानी सीमा से आए घुसपैठिए आतंकियों से लोहा लेते हुए इस रेजीमेंट के 15 जांबाजों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। उरी सेक्टर स्थित भारतीय सेना के कैंप पर हुए हमले में कुल 17 जवानों ने अपनी शहादत दी थी, जिनमें सर्वाधिक 15 बिहार रेजीमेंट के थे। इन 15 जांबाजों में 6 मूलत: बिहार के थे।
करगिल युद्ध में लिखा इतिहास
करगिल युद्ध में विजय कहानी लिखने में भी बिहार रेजीमेंट के जवानों का अमूल्य योगदान रहा। जुलाई 1999 में बटालिक सेक्टर के पॉइंट 4268 और जुबर रिज पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा करने की कोशिश की। बिहार रेजीमेंट के जवानों ने उन्हें भी खदेड़ दिया था।
करगिल युद्ध में शहीद कैप्टन गुरजिंदर सिंह सूरी को मरणोपरांत महावीर चक्र से तो मेजर मरियप्पन सरावनन को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। पटना के गांधी मैदान के पास करगिल चौक पर करगिल युद्ध में शहीद 18 जांबाजों की शहादत की याद में स्मारक बनाया गया है।
मुंबई हमले में मेजर उन्नीकृष्णन शहीद
2008 में जब मुंबई में हमला हुआ था तब एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ऑपरेशन ब्लैक टोरनांडो में शहीद हो गए थे। मेजर संदीप बिहार रेजीमेंट के थे, जो प्रतिनियुक्ति पर एनएसजी में गए थे। इससे पहले बंगलादेश युद्ध के दौरान बिहार रेजीमेंट ने पाकिस्तानी सेना से दो-दो हाथ किया था।
उस दौर में इस रेजीमेंट के वीर सैनिकों ने गोलियां कम पड़ गईं तो कई पाकिस्तानियों को संगीनों से ही मार दिया था। उस युद्ध में पाकिस्तान के 96 हजार सैनिकों ने बिहार रेजीमेंट के जांबाजों के सामने ही सरेंडर (आत्मसमर्पण) किया था, वह विश्व में लड़े गए अब तक के सभी युद्धों में एक रिकॉर्ड है।
Comments